
आरडीए द्वारा निर्मित नगरघड़ी को दोहरा एवार्ड
नगरघड़ी लिमका बुक और इंडिया बुक ऑफ रिकार्डस में शामिल
नगरघड़ी ने बनाया कभी ना टूटने वाला रिकार्ड
नगरघड़ी ने बनाया कभी ना टूटने वाला रिकार्ड
रायपुर, 21 अगस्त 2009. रायपुर विकास प्राधिकरण द्वारा 1995 में निर्मित नगरघड़ी को दोहरा अवार्ड मिला है. भारत की जानी - मानी लिमका बुक ऑफ रिकार्डस और इंडिया बुक ऑफ रिकार्डस ने इसे अपनी पुस्तक में शामिल किया है. रायपुर की नगरघड़ी पूरे भारत की ऐसी पहली संरचना है जिसे हर घंटे बजने वाली छत्तीसगढ़ी धुनों की अवधारणा के कारण इसे लिमका बुक आफ रिकार्ड्स 2009 तथा इंडिया बुक ऑफ रिकार्डस 2009 में शामिल किया गया है. लिमका बुक के बीसवें संस्करण के मानव कथा अध्याय में नगरघड़ी को “ गाता हुआ घंटाघर ” तथा अंग्रेजी संस्करण में “ सिंगिंग क्लॉक टॉवर ” शीर्षक से प्रकाशित किया गया है जबकि इंडिया बुक ऑफ रिकार्डस के आगामी अक्टूबर के अंक में इसे शामिल किया जाएगा. इंडिया बुक ऑफ रिकार्डस ने गत 16 अगस्त को नई दिल्ली के एयरफोर्स आडिटोरियम में आरडीए को एक ट्रॉफी और प्रमाण पत्र प्रदान कर सम्मानित किया है.
प्राधिकरण के अध्यक्ष श्री एस.एस.बजाज और मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री अमित कटारिया के अनुसार नगरघड़ी का लिमका बुक ऑफ रिकार्ड तथा इंडिया बुक ऑफ रिकार्डस में शामिल होना पूरे छत्तीसगढ़ और राजधानी के लिए गौरव का विषय है. उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ शासन के आवास एवं पर्यावरण विभाग के अन्तर्गत निगमित निकाय के रुप में कार्यरत संस्था रायपुर विकास प्राधिकरण की यह उपलब्धि प्रदेश को पूरे देश में गौरवान्वित करेगी. उन्होंनें कहा कि नगरघड़ी में 24 घंटे में 24 छत्तीसगढ़ी धुन बजने का यह एक ऐसा रिकार्ड है जो कभी नहीं टूट सकता. इसका कारण है कि एक दिन में 24 घंटे ही होते हैं यदि कोई 24 से ज्यादा धुन बना भी लेता है तो वह प्रासंगिक नहीं होगा क्योंकि एक दिन में 24 से ज्यादा घंटे हो ही नहीं सकते. इसलिए नगरघड़ी का यह रिकार्ड कभी ना टूटने वाला रिकार्ड बन गया है. उल्लेखनीय है कि लिमका बुक ऑफ रिकार्डस भारत के आश्चर्यजनक और असाधारण उपलब्धियों वाले रिकार्डस की ऐसी पुस्तक है जिसे भारत में विश्व प्रसिद्ध गिनीज बुक ऑफ रिकार्ड्स जैसी प्रतिष्ठा प्राप्त है. 1990 में पहली बार इसे मुंबई में प्रकाशित किया गया था. पुस्तक का उद्देश्य आम भारतीय लोगों की उपलब्धियों और आश्चर्यजनक कारनामों को एक मंच प्रदान करना है. हर वर्ष प्रकाशित होने वाली इस पुस्तक के अब तक इसके 20 अंक प्रकाशित हो चुके हैं. इस पुस्तक में हर वर्ष देश के सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाशाली व्यक्तियों के नामों को घोषणा की जाती है. साथ ही मानव कथा, साहसिक कार्य, शिक्षा, संचार, रेडियो, टेलीविजन, साहित्य, चित्रकला, नृत्य एवं संगीत, चलचित्र एवं रंगमंच, सरकार, परिवहन, चिकित्सा विज्ञान, विकास, प्रकृति एवं कृषि, पशु क्ल्याण, खेलकूद जैसे विषयों पर भारत में बने कई रिकार्ड और आश्चर्यजनक जानकारियां उपलब्ध है. यह पुस्तक अंग्रेजी, हिन्दी तथा मलयालम में भी छपती है. जबकि इंडिया बुक ऑफ रिकार्डस गिनीज बुक ऑफ रिकार्डधारी मेमोरी गुरु श्री विश्वस्वरुपराय चौधरी का प्रकाशन है जो हाल के कुछ वर्षो से प्रकाशित हो रही है.
19 दिसंबर 1995 को रायपुर के कलेक्टोरेट कार्यालय के सामने 50 फुट ऊंचे स्तंभ पर नगरघड़ी की स्थापना की गई थी. छह फुट व्यास वाले घड़ी के डायल के पीछे मैकेनिकल पद्धति से चलने वाली घड़ी में हर घंटा पूरा होने के बाद इसके बुर्ज में लगे पीतल के घंटे की आवाज गूंजती थी. इसमें दिन में एक बार चाबी भी भरनी पड़ती थी. मैकेनिकल घड़ी के बार – बार तकनीकी खराबी आने के कारण 26 जनवरी 2008 को रायपुर विकास प्राधिकरण ने एक नई इलेक्ट्रॉनिक घड़ी लगाई जो अतंरिक्ष के सेटेलाईट से संकेत प्राप्त कर जी.पी.एस. (ग्लोबल पोजिशिनिंग सिस्टम) प्रणाली से सही समय बताती है. अब यह हर घंटे छत्तीसगढ़ की एक लोकप्रिय मधुर लोकधुन सुनाती है
दरअसल जी.पी.एस.पध्दति सही समय जानने की एक नई तकनीक है जो सेना द्वारा अपनाई जाती थी बाद में इसे भारतीय रेल विभाग में भी लागू किया गया ताकि पूरे देश में एक सा समय रहे. रायपुर विकास प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष श्री श्याम बैस ने तत्समय छत्तीसगढ़ की लोकधुनों को लोकप्रिय बनाने के लिए नगरघड़ी में हर घंटे के बाद बजने वाले घंटे की आवाज के पहले छत्तीसगढ़ की लोकधुनों को संयोजित करने का निर्णय लिया था ताकि इससे आम आदमी भी लोकधुनों से परिचित हो सके. 26 जनवरी 2008 को नई घड़ी लगने के बाद से नगरघड़ी में हर दिन हर घंटे के बाद एक छत्तीसगढ़ी लोकधुन बजती है. चौबीस घंटे में कुल 24 अलग – अलग लोकप्रिय छत्तीसगढ़ी धुनें बजती है. समय के मनोभावों के अनुरुप इन धुनों का चयन प्रदेश के लोक कलाकारों के विशेषज्ञ समिति के द्वारा किया गया है जिसमें लोक संगीत को पुरोधा माने जाने वाले श्री खुमानलाल साव, लोक गायिका श्रीमती ममता चन्द्राकर, छत्तीसगढ़ी फिल्म निर्देशक श्री मोहन सुन्दरानी, लोक कला के ज्ञाता श्री शिव कुमार तिवारी और लोक कलाकार श्री राकेश तिवारी ने किया है. समिति की अनुशंसा के फलस्वरुप श्री राकेश तिवारी ने विशेष रुप से लोकधुनें तैयार की है. सुबह चार बजे से हर घंटे के बाद लगभग 30 सेकेण्ड की यह धुनें नगरघड़ी में बजती हुई छत्तीसगढ़ की लोकधुनों से आम आदमी का परिचय कराती है. रायपुर की नगरघड़ी में चौबीस घंटे चौबीस धुनें बजती है. सुबह 4:00 बजे – जसगीत, 5:00 बजे – रामधुनी, 6:00 बजे – भोजली, 7:00 बजे - पंथी नाचा, 8:00 बजे – ददरिया, 9:00 बजे – देवार, 10:00 बजे – करमा, 11:00 बजे – भड़ौनी, दोपहर 12:00 बजे - सुआ गीत, 1:00 बजे – भरथरी, 2:00 बजे - डंडा नृत्य, 3:00 बजे – फाग गीत , 4:00 बजे – चंदैनी, सांयः 5:00 बजे - पंडवानी, 6:00 बजे – राऊत नाचा, 7:00 बजे – गौरा, रात 8:00 बजे – परब, 9:00 बजे – आलहा, 10:00 बजे – नाचा, 11:00 बजे – कमार, 12:00 बजे – सरहुल, 1:00 बजे – बांसगीत, 2:00 बजे – ढ़ोलामारू , 3:00 बजे - सोहर गीत की धुनें नगरघड़ी से बजती है.
राजधानी रायपुर के ह्रदय स्थल पर बनी नगरघड़ी का 19 दिसंबर 1995 को मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह नें लोकार्पण किया था. हर घंटे लोकधुन सुनाने के कारण अब यह छत्तीसगढ़ की संस्कृति की एक नई पहचान बन गई है. नगरघड़ी का कांक्रीट स्तंभ 50 फुट ऊंचा है. आर.सी.सी. संरचना पर आधारित नगरघड़ी की बाहरी दीवारों पर उदयपुर राजस्थान का सफेद संगमरमर तथा ग्रेनाईट लगाया गया है. इसके स्तंभ के चारों दिशाओं में छह फुट व्यास वाले डायल प्लास्टिक एक्रेलिक शीट के हैं. नगरघड़ी को बनाने में 275 दिन का समय लगा था. घड़ी के स्तंभ का निर्माण कार्य एक मार्च 1995 को शुरु कर 30 नवंबर 1995 को पूरा किया गया. नई इलेक्ट्रानिक घड़ी कोचीन, केरल की टूल एंड टाईम इंजीनियरिंग कंपनी ने 90 दिनों में स्थापित की है. कंपनी ने 29 अक्टूबर 2007 को काम शुरु कर 26 जनवरी को 2008 को काम पूरा किया. नई इलेक्ट्रानिक घड़ी में जी.पी.एस.आधारित क्लॉक कंट्रोलर, स्टेपर मोटरयुक्त मैकेनिज्म इकाई, डायल, घंटे तथा मिनट के कांटे, एम्पलीफायर, चार लाऊडस्पीकर व बैटरी लगी है.
नगरघड़ी में छत्तीसगढ़ की 24 लोकधुनों को संयोजित कर लोक संस्कृति को बढ़ावा देने की दिशा में किया गया प्रयास शायद पूरे विश्व में एक अनूठा और कभी ना टूट सकने वाला अनोखा रिकार्ड है. नगरघड़ी में हर घंटे बजने वाली लोकधुन पूरे छत्तीसगढ़ लोक संस्कृति की अभिव्यक्ति है. नगरघड़ी में नई इलेक्ट्रॉनिक घड़ी लगाने की अवधारणा एवं स्थापना में पूर्व अध्यक्ष श्री श्याम बैस के नेतृत्व में पूर्व उपाध्यक्षव्दय श्री श्रीचंद सुन्दरानी व श्री वर्धमान सुराना, पूर्व मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री एम.डी.दीवान, कार्यपालन अभियंता श्री पी.आर.नारंग, सहायक यंत्री श्री योगेशचन्द्र साहू, उपअभियंता श्री अजीत सिंह जब्बल तथा जनसंपर्क अधिकारी श्री तेजपाल सिंह हंसपाल की विशेष भागीदारी रही है.
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